Guruwar Vrat – गुरुवार व्रत हिन्दू धरम मे पारंपरिक चलता आया है। गुरुवार यानी बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु और बृहस्पति देव को समर्पित है. इस दिन भगवान विष्णु और बृहस्पतिदेव की पूजा का विधान है। गुरुवार का व्रत बडा ही फलदाई माना जाता है। हिन्दू धरम मे केले के पेड़ को बहोत पवित्र माना जाता है। इसिलिए इस बृहस्पति देव और केले के पेड़ की पूजा की जाती है। गुरुवार व्रत की पारंपरिक विधि,व्रत, और उसका उद्यापन कैसे करते है आज आपको बताते है।
गुरुवार का व्रत कब शुरू करे
चलिए देखते है गुरुवार व्रत की पारंपरिक विधि कब से शुरू करे।
हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन किसी ना किसी देवी-देवता को समर्पित है. इसी प्रकार गुरुवार यानी बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु और बृहस्पति देव को समर्पित है. इस दिन भगवान विष्णु और बृहस्पतिदेव की पूजा का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक एक साल में कुल 16 बृहस्पतिवार का व्रत किया जाता है और 17वें बृहस्पतिवार के दिन इस व्रत का उद्यापन किया जाता है. पौष माह को छोड़कर इस व्रत को किसी भी महीने में शुरू किया जा सकता है. पौष माह दिसंबर से जनवरी के बीच आता है. बृहस्पतिवार का व्रत शुरू करने के लिए सबसे शुभ मुहूर्त हिंदी महीने के शुक्लपक्ष का पहला बृहस्पतिवार माना जाता है.
इस दिन पीले वस्त्र और पीले फल , फूल का महत्व होता है। मान्यता है कि पूरी श्रद्धा के साथ गुरुवार का व्रत करने पर विष्णु जी कृपा हमेशा बनी रहती है। बृहस्पति का व्रत करने से गुरु का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत करने से गुरु का दोष खत्म होता है और जीवन मे सुख समृद्धि आती है।
बृहस्पतिवार का व्रत कैसे किया जाता है और इस व्रत के उद्यापन की विधि क्या है इसे जान लेते है।
बृहस्पति व्रत का पूजा, विधि विधान
गुरुवार के दिन ब्रम्हा मुहूरत मे जाग जाए, उठकर नित्य कर्म से निवृत हो जाएं, और इसके बाद स्नान कर के साफ वस्त्र परिधान करे। विष्णुजी का ध्यान करते विष्णुजी की प्रतिमा और कलश की स्थापना करे। इस व्रत में केले के पेड़ या भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. अगर पूजा केले के पेड़ के सामने किया जाता है तो छोटा पीला कपड़ा चढ़ाया जाता है. इस व्रत में केले के पेड़ या भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. बृहस्पतिवार व्रत की पूजन सामग्री में दाल, गुड़, हल्दी, केले और उपले की जरूरत पड़ती है। पूजन के लिए एक लोटे में जल भरकर रखा जाता है. जल में हल्दी, गुड़ और चने की दाल मिलाकर केले में चढ़ाया जाता है. इसके बाद भगवान को हल्दी या पीले चंदन से तिलक किया जाता है। उनके सामने सुंदर रंगोली निकाले, उनको सुंदर पीले फूलो से , पीले वस्त्र से और पीले फलों से सजाए उनके सामने घी का दीपक जलाकर गुरुवार व्रत का संकल्प करे। भगवान विष्णु जी का मंत्र का 108 बार जाप करे। बृहस्पतिवार का कथा वाचन करे। कथा के बाद उपले का हवन किया जाता है। हवन सामग्री में चने और गुड़ का इस्तेमाल करे। ओम् गुं गुरुवे नमः इस मंत्र के 5, 7 या 11 बार आहुति दे कर, अंत में बृहस्पति देव की आरती कर क्षमा प्रार्थना करे।
बृहस्पति व्रत नियम
बृहस्पतिवार व्रत के दिन व्रत रखने वाले को कुछ नियमों का ध्यान रखना चाहिए। व्रत के दिन अपने बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए। इस दिन किसिको भला- बुरा शब्द का प्रयोग नहीं करनी चाहिए। पूरा दिन भगवान विष्णु की ध्यान मे लिन हो जाए। व्रत का पूरा दिन विष्णु भगवान को समर्पित करे।
बृहस्पति व्रत उद्यापन
बृहस्पतिवार व्रत का उद्यापन करने के लिए चने की दाल, गुड़, हल्दी, केला, पपीता और पीले वस्त्र की जरूरत होती है. इसके बाद बृहस्पतिदेव की विधिवत पूजा की जाती है. फिर भगवान को सारी सामग्री चढ़ाकर व्रत का उद्यापन किया जाता है. उद्यापन के बाद बृहस्पति देव को समर्पित किया हुवा फल, चने की दाल, गुड़ , हल्दी, केला , पपीता इन सब वस्तु का प्रशाद रूप मे दान करे।